Kavita Jha

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मेरी बैस्टी मेरी डायरी# डायरी लेखन प्रतियोगिता -17-Dec-2021

दिसम्बर महीने की खास बातें...
अभी दिसंबर बीता नहीं है ... इन बाकी के दो दिनों में और क्या कुछ नया होगा ये तो पता नहीं पर इस महीने भी काफी कुछ नया हुआ।
फेसबुक लाइव पर आना एक सपना भी था और घबराहट भी हो रही थी, जो एक प्यारी सी सखि जिनसे पहले यही प्रतिलिपि पर मिली फिर अन्य बहुत सारे ओनलाइन मंच के साथ साक्षात मिलना भी हो पाया... स्नेह लता जी... रश्मिरथी पर काव्य पाठ किया उनके संचालन में। बहुत ही शानदार रहा वो कार्यक्रम मेरे हिसाब से बस अंत में एक महोदय के कारण अच्छा नहीं लगा.. लाइव प्रसारण में अन्य किसी मंच के सर्टिफिकेट के लिए इस तरह स्नेहलता जी से जब वो बहस करने को हुए... सच आजकल साहित्य और साहित्यकारों के गिरते स्तर को सोचकर लगा यहां से कदम बाहर कर लिया जाए... लेकिन ये भी मुश्किल है अब मेरे लिए.. तैरना आता नहीं और डुबकी लगा दी है इंटरनेट के इस साहित्य महासागर में..
दिसंबर में आखिर अपने उस उपन्यास को अधूरा ही छोड़ना पड़ा जिसे समय पर मैं पूरा ही नहीं कर पाई।एक साथ कई कस्ती पर सवारी करना... पता नहीं यहां अन्य लेखक कैसे लिख लेते हैं सभी मंच पर। मैं तो कहीं पूरा कर ही नहीं पाती... पर करना सब चाहती हूं।
इसी महीने घर में एक खास उत्साह था हमारे बीच वो था बिटिया की सगाई।वैसे हमारे में ये सगाई और अंगूठी वाली ऐसी कोई रस्म है ही नहीं वो तो आजकल के बच्चों के शौक को पूरा करने के लिए सब तैयार हो गए।काफी अच्छा रहा वो फ़क्सन... मेंहदी और फिर इंगेजमेंट।शादी मई में.. बस सब अच्छा रहे।
इस बार दो ई-पत्रिका और एक अखबार  में अपनी कविता और लेख पढ़कर आनंद आ गया।कभी कभी लगता है मैं फालतू लिखती हूं पर कभी लगता है नहीं नहीं कुछ तो बात है मेरे लेखन में जो पाठक पसंद करते हैं।
इस महीने किताबों का खजाना हाथ आया पर पढ़ने का समय ही नहीं मिल रहा.. अभी तो प्रतिलिपि और लेखनी पर अपने साथियों की लिखी रचनाएं भी नहीं पढ़ पा रही।
बातें तो बहुत है...
पर समय कम है...
जमाने में कितने ग़म है..
आंखें हमारी भी नम हैं...
इस साल बहुत से अपनों को खोया है।अभी कुछ दिन पहले ही प्रतिलिपि की एक लेखिका शशि गोयल जैन जो अच्छी सखि बन गई थी उनके बारे में पढ़ा... कैंसर से उनकी मौत... कभी मिली नहीं थी उनसे पर एक लगाव जो हो गया था। परिवार के सदस्य को खोने का दुख वही जानता है जिसने अपनों को खोया होता है!
अभी कल ही अमित जी जो प्रतिलिपि के साथ काव्य धारा से जुड़े हैं उनके एक्सिडेंट का पढ़ मन दुखी हो गया, भगवान जल्द उन्हें स्वस्थ कर दें और फिर से अगली काव्य धारा में अमित भाई के नगमें सुन सके हम।
जनवरी से दिसम्बर तक की यादों को साझा किया तुझ संग बैस्टी फिर भी लगता है बहुत कुछ छूट गया जिसे मैं तुझे बताना चाहती थी, पर मन में एक डर हमेशा रहता है कि मेरी किसी बात से किसी को बुरा न लगे। किसी व्यक्ति विशेष या किसी मंच विशेष के बारे में बताने से कोई दुखी न हो जाए क्योंकि कई बार देखा है मैंने ऐसा होते हुए।चल एक अलग पन्ने में उन सभी बातों को लेकर आऊंगी जो छूट गया बताने से...
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कविता झा'काव्या कवि'
# लेखन

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